जून में खुल रही है फूलों की घाटी,आप भी जाने का बना सकते है मन 

कहते है  फूलों के साथ रहकर हम आशावादी और सकारात्मकता की तरफ बढ़ते है और मन को ये पुष्प अलग ही सुकुन देते है। अगर आप भी है उन्ही में से एक  जो फूलों से प्यार करते है ।यदि आप भी फूलों के स्वर्ग यानी फूलो की घाटी का दीदार करना चाहते है तो चले आइए उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित flower valley में।

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उत्तराखंड में स्थित फूलो की घाटी को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा भी दिया जा चुका है और यह भारत के सबसे बेहतरीन ट्रैको में से एक है जो की नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। चमोली गढ़वाल के हिमालय की गोद में स्थित यह स्थल सुंदरता का गढ़ है। यहां पर जाकर आप खुद को तरोताजा महसूस करेंगे क्योंकि यहां हवा के साथ खुशबू बहती है।यहां पर रहकर आप प्रकृति के साथ जुड़ सकते है।

यात्रा के अहम चरण

यदि आप उत्तराखंड के बाहर से आ रहे है तो सबसे पहले आपको ऋषिकेश पहुंचना होगा। इसके बाद आप यहां से जोशीमठ और उसके बाद गोविंदघाट चमोली के लिए प्रस्थान करेंगे जहां पर रात्रि विश्राम भी कर सकते है। इसके बाद आप को घागरिया ट्रेक  जो की लगभग 9km लंबा है आपको उसके लिए निकलना होगा। यह लगभग 10000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।इसके पश्चात आपको फूलो की घाटी ट्रेक के लिए निकलना पड़ेगा जो की लगभग 4km लंबा है इसके बाद आप फाइनली प्रवेश करेंगे फूलो की घाटी में जिसका विस्तार 6 से 7 km तक है और सफर का अंत होता है ग्लेशियर पर,  पर ध्यान रहे यहां आपको घूमने के लिए कम से 4 से 5 दिन का समय चाहिए, विश्राम के लिए विभिन्न जगह पर होटल की सुविधा मिलेगी।

फूलो की घाटी का इतिहास

वैली ऑफ फ्लावर्स की खोज ब्रिटिश पर्वतारोही और वनस्पति विज्ञानी फ्रैंक स्माइथ ने की थी। 1931 में, स्माइथ और उनके साथी आर एल होल्ड्सवर्थ माउंट कामेट पर एक सफल अभियान से लौटते समय इस घाटी पर ठोकर खा गए। क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता से मोहित होकर, स्माइथ ने अपने अनुभव के बारे में अपनी पुस्तक “द वैली ऑफ फ्लावर्स” में लिखा, जो 1937 में प्रकाशित हुई थी।

आखिर ऐसा क्या है फूलो की घाटी में

फूलो  की घाटी ट्रेक अपने फूलों के लिए दुनिया भर में मशहूर है. फूलों की घाटी दुर्लभ हिमालयी वनस्पतियों से समृद्ध है और जैव विविधता का अनुपम खजाना है. यहां 500 से अधिक प्रजाति के रंग बिरंगी फूल खिलते हैं।

देशी और विदेशी टूरिस्ट के किए शुल्क का प्रावधान 

बेस कैंप घांघरिया में पर्यटकों के ठहरने की समुचित व्यवस्था है. उन्होंने बताया कि वैली ऑफ फ्लावर ट्रैकिंग के लिए देशी नागरिकों को 200 रुपए तथा विदेशी नागरिकों के लिए 800 रुपए ईको ट्रेक शुल्क निर्धारित किया गया है. ट्रैक को सुगम और सुविधाजनक बनाया गया है. फूलों की घाटी के लिए बेस कैंप घांघरिया से टूरिस्ट गाइड की सुविधा भी रहेगी.

घाटी से जुड़े अचंभित करने वाले कुछ तथ्य

  • वैली ऑफ फ्लावर लगभग 87.50 वर्ग कि.मी के क्षेत्रफल में फैली हुई है, जो लगभग 2 कि.मी. चौड़ी और लगभग 8 कि.मी. लंबी है।
    इस वैली की समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 3352 से 3658 मीटर है, यह नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का ही एक हिस्सा है।
    किंवदंती है कि रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी बूटी की खोज में यहीं पर आए थे।
    खास बात यह है कि फूलों की घाटी हर 2 सप्ताह में अपना रंग भी बदलती है। कभी लाल तो कभी पीले फूलों के खिलने से घाटी में प्रकृति रंग बदल कर पर्यटकों को आकर्षित करती है।
    स्थानीय लोग हमेशा घाटी के अस्तित्व के बारे में जानते थे और मानते थे कि यह परियों और भगवान द्वारा बसाया गया था।
    भारत सरकार द्वारा वर्ष 1982 में इस घाटी को भारतीय राष्ट्रीय उद्यान के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी।
    वर्ष 1988 में यूनेस्को ने इस घाटी की अद्भुत सुंदरता, स्वच्छ वातावरण को ध्यान में रखते हुए इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में सम्मिलित कर लिया था।
    भारतीय वन अनुसंधान संस्थान ने वर्ष 1992 में इस घाटी के आसपास लगभग 600 से अधिक एंजियोस्पर्म की प्रजातियों वाले पौधे पाए और लगभग 30 पटेरिडोफाइट्स प्रजातियों वाले पौधों की पहचान की गई है।
  • शायद अब आपको जरूर अहसास हो गया होगा की ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं है,तो आप यहां आने के लिए विचार कर सकते है। यहां आने पर हेमकुंड साहिब की भी यात्रा पर भी जा सकते है जो की भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित गुरुद्वारा है। उत्तराखंड में स्थित यह घाटी  आपके लिए 1 अक्टूबर तक खुली रहेगी। 

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