स्क्रीन टाइम और डिजिटल पैरेंटिंग आज के इस डिजिटल साम्राज्य में छोटे बच्चे हो या बड़े, कोई भी शख्स मोबाइल की इस आभासी दुनिया में खोया हुआ है। खासकर जब बात छोटे बच्चों की हो तो इस विषय पर वाद विवाद सुनने को अक्सर मिलते है। आज हम सभी की दुनिया में मोबाइल,टैबलेट,लैपटॉप और डिजिटल गैजेट ने एक महत्तपूर्ण स्थान अदा किया है। लेकिन सबसे जरूरी है कि इसके मध्य तालमेल या सामंजस्य कैसे बैठाया जाय। आइए हम इस लेखन के माध्यम से जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे स्क्रीन टाइम को कम कर एक अच्छे माता पिता बन सकते है
कहते है ठान लिया जाय तो सब कुछ संभव है, सर्वप्रथम हम यदि स्क्रीन टाइम को सीमित कर दे और बच्चो को बहुत ही कम समय के लिए इसे प्रयोग करने को कहे और निगरानी रखे तो यह कार्य आसानी से किया जा सकता है।
बच्चे अगर इसे पढ़ाई लिखाई की सामग्री के रूप में प्रयोग करते है तो ये कुछ हद तक बेहतर विकल्प है लेकिन यदि घंटे व्यतीत होने लगते है तो यह चिंताजनक है।कोशिश की जाए कि गुणवत्ता सामग्री पर समय बिताया जाय।
छोटे बच्चों को ऑनलाइन खतरों और मालवेयर की जानकारी भी दे तो सही रहेगा ,जिससे वो इसके दुष्परिणाम से परिचित हो सके। बच्चो को ट्रैक किया जाना भी जरूरी है जिससे वो गलत रास्ते पर न जाए।
खाना खाते वक्त यदि वो मोबाइल या किसी भी गैजेट का प्रयोग करे,तो उन्हें यह करने से बिल्कुल मना करे,इससे उनकी सेहत पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई देगा।
सबसे ज्यादा जरूरी है कि उन्हें ये बताए इसके बाहर एक बेहतरीन दुनिया उनका स्वागत कर रही है। जो भी ऑफलाइन गतिविधि होती है उनको बढ़ावा दिया जाए। जिसमें किताबें,कॉमिक बुक,कहानी सुनना,पेंटिंग ,कला आदि जो गतिविधि उन्हें व्यस्त बनाए रखे,और उनका इस आभासी दुनिया की और ध्यान कम से कम जाय।
इसके कुछ नकारात्मक पहलू हमे साफ साफ नजर आ सकते है जैसे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर मामले, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता मे गिरावट आना,नींद सही से न आना, सिरदर्द,मोटापा, आंखों में परेशानी, और समाज से कट जाना आदि।
यदि हम सभी इन बातों का ध्यान रखते हुई उन्हें सही दिशा में ढालने में सफल होते है तो ये हमारी एक अच्छी पैरेन्टिंग रहेगी,और अगर हम यह सब कर पाए तो हम सभी एक अच्छे माता पिता और पालनहार बन पाएंगे ।